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Intelligence Network at Grassroots

The Government proposes to set up to strengthen intelligence network at grassroots level. The State intelligence and security agencies and State Special branches which have intelligence network at the grassroots level are also Centrally supported and strengthened through the scheme of Modernisation of State Police Forces. In addition with a view to link up this grassroot and State level network with the Central Agencies, action has been initiated for establishment of online, dedicated and secure connectivity between all the designated Members of Multi-Agency Centre (MAC), MAC and the Subsidiary Multi-Agency Centres (SMACs) in 30 important identified locations and between the SMACs and the State Special Branches (SSBs).

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कर्ण और कृष्ण का संवाद - रामधारी सिंह 'दिनकर'

Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ,  फिर कहा "बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है  दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा  मैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ,  कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल  धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?  सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको,  जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है  आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहीं  हे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये  सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन  वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थी  पत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था  गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के  दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम किया  माँ...

रश्मिरथी ( सप्तम सर्ग ): कर्ण वध - रामधारी सिंह 'दिनकर'

1 निशा बीती, गगन का रूप दमका, किनारे पर किसी का चीर चमका। क्षितिज के पास लाली छा रही है, अतल से कौन ऊपर आ रही है ? संभाले शीश पर आलोक-मंडल दिशाओं में उड़ाती ज्योतिरंचल, किरण में स्निग्ध आतप फेंकती-सी, शिशिर कम्पित द्रुमों को सेंकती-सी, खगों का स्पर्श से कर पंख-मोचन कुसुम के पोंछती हिम-सिक्त लोचन, दिवस की स्वामिनी आई गगन में, उडा कुंकुम, जगा जीवन भुवन में । मगर, नर बुद्धि-मद से चूर होकर, अलग बैठा हुआ है दूर होकर, उषा पोंछे भला फिर आँख कैसे ? करे उन्मुक्त मन की पाँख कैसे ? मनुज विभ्राट् ज्ञानी हो चुका है, कुतुक का उत्स पानी हो चुका है, प्रकृति में कौन वह उत्साह खोजे ? सितारों के हृदय में राह खोजे ? विभा नर को नहीं भरमायगी यह है ? मनस्वी को कहाँ ले जायगी यह ? कभी मिलता नहीं आराम इसको, न छेड़ो, है अनेकों काम इसको । महाभारत मही पर चल रहा है, भुवन का भाग्य रण में जल रहा है। मनुज ललकारता फिरता मनुज को, मनुज ही मारता फिरता मनुज को । पुरुष की बुद्धि गौरव खो चुकी है, सहेली सर्पिणी की हो चुकी है, न छोड़ेगी किसी अपकर्म को वह, निगल ही जायगी सद्धर्म को वह । मरे अभिमन्यु अथवा भीष्म टूटें, पिता के प्राण...

मोची

मुंबई स्थित मलाड स्टेशन के बाहर बैठने वाला एक मोची मेरे लिए पिछले 4 महीनों से कौतूहल का विषय बना हुआ था। 4 माह पूर्व मैंने मलाड स्थित एक कंपनी में नौकरी ज्वाइन की थी, यद्यपि मेरी पिछली नौकरी की तुलना में वेतन यहां कुछ कम था परंतु महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह मेरे निवास स्थान बोरीवली से बहुत ही नज़दीक था जिसकी वजह से मुझे सुबह एवं शाम दोनों वक्त स्वयं के लिए समय मिल जाता था। मेरी अन्य आदतों में एक बहुत ही गैर जरूरी आदत यह रही है कि मैं रोज ऑफिस जाने से पहले अपने जूते मोची से पॉलिश करा कर जाता रहा हूं। ऑफिस का वक्त 9:30 बजे प्रारंभ होता था और मैं सामान्यता 9:15 बजे मलाड स्टेशन पर उतर कर अपने जूते पॉलिश कराने के पश्चात 9:25 बजे तक ऑफिस पहुंच जाया करता था। नई नौकरी ज्वाइन किए हुए करीब 1 हफ्ते का वक्त गुजरा होगा मैं रोज की तरह स्टेशन से उतर कर जिस जगह कतार में 5-6 मोची बैठे रहते थे उस और अपने जूते पॉलिश कराने के उद्देश्य से गया। आज मैं समय से थोड़ा पहले निकला था, वक्त करीब 9:00 बज रहे थे मैंने देखा की बाकी सभी मोची व्यस्त थे एवं एक थोड़ा अलग सा दिखने वाला मोची अभी अभी तुरंत ही आया था। उसे ख...

WHO AM I

I am the ring around Saturn spinning words as particles of ice and dust with the power to transcend I am the original chosen to be right here right now transmitting verbal frequencies through speaking my thoughts into existence I am the heir of omnipotence, born with a direct connection to profound abundance The one whose words will age, yet still have substance; since there are no boundaries attached to my pen I am constant energy Translating personal experience into imagery Vulnerable to tyranny, yet I continue attempting to share some truth through this abstract language of poetry I am the core I am that I am more I am the Divine Presence that is the Source of my rewards I am the green you get when you mix too much yellow with the blue That shade of gold you get when the sun resides into darkness and when it ascends in the dawn burning dew I am the transition between the third and fourth dimension of time; the love you feel when you realize how it feels I am the poem th...

शब्द हैं विचार हैं

शब्द हैं विचार हैं । शब्दों में विचार है, या विचारों में शब्द है । कभी विचार हैं तो शब्द नहीं, और कभी शब्द हैं तो विचार नहीं । न विचार सदा रहे बंधे, शब्दों के जाल में । न शब्द सर्वदा रहे, विचारों के प्रभाव में । शब्द जो निशब्द है, विचार सब व्यर्थ है । विचार जो भ्रांत है, शब्द सब निरर्थ हैं । उपयुक्त विचार अयुक्त शब्द, युद्ध का प्रारब्ध है । कुटिल विचार मृदु शब्द, विध्वंस का आरम्भ है । शब्द व विचार के इस युद्ध को विराम देकर । विचारों के सागर से शब्दों के मोती निकालकर , उन मोतियों को विचारों के धागों में पिरोने वाला । जिसने इनका निष्कलंक संतुलन है पाया, वही उत्तम मनुष्य है कहलाया ।