Skip to main content

Demands of Anna hazare which got accepted

The three issue which were accepted by government resulting in end of fast by anna hazare are


(a) Citizens Charter defining the time in which a public service must be delivered,
(b) Lower bureaucracy also to be under Lokpal through appropriate mechanism,
(c) Establishment of a Lokayukta in the States;

The issue of bringing Prime minister and higher judiciary got no mention in resolution passed by parliament , so it can be safely assumed that on this issue ,which was more n focus of debate, both side agreed to keep PM and higher judiciary out of ambit of Lokpal .

Comments

Popular posts from this blog

कर्ण और कृष्ण का संवाद - रामधारी सिंह 'दिनकर'

Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ,  फिर कहा "बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है  दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा  मैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ,  कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल  धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?  सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको,  जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है  आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहीं  हे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये  सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन  वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थी  पत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था  गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के  दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम किया  माँ...

रश्मिरथी ( सप्तम सर्ग ): कर्ण वध - रामधारी सिंह 'दिनकर'

1 निशा बीती, गगन का रूप दमका, किनारे पर किसी का चीर चमका। क्षितिज के पास लाली छा रही है, अतल से कौन ऊपर आ रही है ? संभाले शीश पर आलोक-मंडल दिशाओं में उड़ाती ज्योतिरंचल, किरण में स्निग्ध आतप फेंकती-सी, शिशिर कम्पित द्रुमों को सेंकती-सी, खगों का स्पर्श से कर पंख-मोचन कुसुम के पोंछती हिम-सिक्त लोचन, दिवस की स्वामिनी आई गगन में, उडा कुंकुम, जगा जीवन भुवन में । मगर, नर बुद्धि-मद से चूर होकर, अलग बैठा हुआ है दूर होकर, उषा पोंछे भला फिर आँख कैसे ? करे उन्मुक्त मन की पाँख कैसे ? मनुज विभ्राट् ज्ञानी हो चुका है, कुतुक का उत्स पानी हो चुका है, प्रकृति में कौन वह उत्साह खोजे ? सितारों के हृदय में राह खोजे ? विभा नर को नहीं भरमायगी यह है ? मनस्वी को कहाँ ले जायगी यह ? कभी मिलता नहीं आराम इसको, न छेड़ो, है अनेकों काम इसको । महाभारत मही पर चल रहा है, भुवन का भाग्य रण में जल रहा है। मनुज ललकारता फिरता मनुज को, मनुज ही मारता फिरता मनुज को । पुरुष की बुद्धि गौरव खो चुकी है, सहेली सर्पिणी की हो चुकी है, न छोड़ेगी किसी अपकर्म को वह, निगल ही जायगी सद्धर्म को वह । मरे अभिमन्यु अथवा भीष्म टूटें, पिता के प्राण...

Scheme for creation of National Optical Fiber Network for Broadband connectivity of Panchayats

The Union Cabinet recently approved a scheme for creation of a National Optical Fiber Network (NOFN) for providing Broadband connectivity to Panchayats. The objective of the scheme is to extend the existing optical fiber network which is available up to district / block HQ’s level to the Gram Panchayat level initially by utilizing the Universal Service Obligation Fund (USOF). The cost of this initial phase of the NOFN scheme is likely to be about Rs.20,000 crore. A similar amount of investment is likely to be made by the private sector complementing the NOFN infrastructure while providing services to individual users. In economic terms, the benefits from the scheme are expected through additional employment, e-education, e-health, e-agriculture etc. and reduction in migration of rural population to urban areas. As per a study conducted by the World Bank, with every 10% increase in broadband penetration, there is an increase in GDP growth by 1.4%. NOFN will also facilitate implemen...

वसुधा का नेता कौन हुआ

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।

किसको नमन करूँ मैं भारत? - Kisko Naman Karu Mein Bharat?

A poem dedicated to the nation written by Ramdhari Singh "dinkar"... तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ? मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ? किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ? भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ? नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ? भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ? भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं ! खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं ! दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं मित्र-भाव की ओर विश्व की ...