सच है, विपत्ति जब आती है,
सूरमा नही विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब ज़ोर लगाता है,
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नही जलाता है,
- Ramdhari Singh Dinkar
nishchit rup se chayavad ka yah janak,veer ras ka visharad aj bhi kuruchhetra ki bhanti ek satya hai
ReplyDeleteकृपया कविताओं का अनुवाद भी किया करें।
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