Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ, फिर कहा "बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा मैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ, कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है? सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको, जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहीं हे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थी पत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम किया माँ का पय भी न पीया मैंने, उलटे अभिशाप लिया मैंने वह तो यशस्विनी बनी रह
Very well written. Thanks for sharing.🙏
ReplyDeleteVery good one !! Well articulated!!
ReplyDeleteWell composed dear priest
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteSuperb sir...
ReplyDeleteWell describes Kanha ... very well written
ReplyDeleteकृष्ण के रूप का एवं उनकी आज के युग में आवश्यकता का अद्भुत चित्रण!!
ReplyDeleteSuper cry for krishna.very Well written
ReplyDeleteअद्भुत आह्वान... पुरुष का पुरोषोत्तम में....रमणीय !!!!🎶🕉✡...👏👏👏
ReplyDeleteAwesome sir
ReplyDeleteNice!!! :)
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