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Showing posts from August, 2016

सकारात्मक

चला जा रहा हूँ , चला जा रहा हूँ | उँचे पहाड़ों पे , उठता हुआ मैं | चला जा रहा हूँ , चला जा रहा हूँ | नीचे है घाटी या कोई समुंदर | गहराई में गिरता , चला जा रहा हूँ | चला जा रहा हूँ , चला जा रहा हूँ | वो कानन, कुसुम और कोमल से नभचर | वो उँची उड़ाने , चला जा रहा हूँ | वो नाचते निर्झर , वो नीर निरंतर | कल-कल का गुंजन , चला जा रहा हूँ | हरी सी वो चादर जो खुद मे लपेटे | वो भूरा सा भूदर, चला जा रहा हूँ | वो स्वेत सा ओढन, जो लगता है अंबर | मेघों मे भीगता मैं, चला जा रहा हूँ | हैं साथी जो पथ मे वो साथ समान्तर | कर में मैं कर कर , चला जा रहा हूँ | चला जा रहा हूँ , चला जा रहा हूँ | उँचे पहाड़ों पे , उठता हुआ मैं | चला जा रहा हूँ , चला जा रहा हूँ |                  

एक पुलिसवाले की व्यथा

लोग अक्सर कहते हैं कि पुलिस सही तरीके से क्राइम कंट्रोल नहीं करती है लेकिन पुलिस करे तो करे क्या। उग्र भीड़ को क्राइम कंट्रोल करने पर आधारित एक लघु कथा। उन्मादी भीड़ हाथों में नंगी तलवारें, लाठी, डंडे लिए पागलों की तरह पुलिस वालों को पत्थर मार मार कर खदेड़ रही थी। उसकी पुलिस भीड़ से अपना असलाह और खुद को बचाते हुए पीछे हट रही थी। थानेदार का सर बुरी तरह फूट गया दो सिपाही उसे सँभालते हुए पीछे हट रहे थे बड़े अफसर, एस डी ऍम, सब मौके से गायब थे। ऑर्रडर देने वाला कोई दूर दूर तक नहीं था। भीड़ हावी होती जा रही थी। सब को कहीं न कही चोट लगी थी।भीड़ को लाठी डंडो से काबू करने के हालात तो बिलकुल भी नहीं थे। सबकी जान पर बनी हुई थी परंतु हाथ में लोड राइफल होते हुए भी जवान गोली चलाने से बच रहे थे, कैसी कायर स्तिथि थी। अचानक हवलदार बुधना को भीड़ ने पकड़ लिया और एक आदमी ने बुधना के सर पर कैरोसिन की गैलन उंडेल दी और दूसरे ने माचिस निकाली ही थी की धाँय की आवाज हुई और माचिस वाला जमीं पर लुढकने लगा।दूसरी आवाज में तेल के गैलन वाला जमीं पर कला बाजी खा रहा था । भीड़ जहां थी वहीँ थम गयी और उलटे पावँ भागने लगी लेकिन......अ