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Technology Mission for Technical Textile

The Government has already launched a Technology Mission on Technical Textiles (TMTT) for a period of five years (from 2010-11 to 2014-15) with a fund outlay of Rs. 200 crore. The Scheme has two Mini-Missions. Mini Mission-I is for standardization, creating common testing facilities, indigenous development of prototypes and Resource Centres with I.T infrastructure in eight Centres of Excellence (COE). Mini Mission-II focuses on support for domestic and export market development of Technical Textiles through assistance for business start-ups; contract research; assistance for buyer seller meets and participation in international exhibitions/seminars for Technical Textiles.

In order to increase the share of Indian clothes in the world market and to enhance capacity of man-made fibre , the government has launched various schemes / measures like Technology Upgradation Fund Scheme (TUFS), Scheme for Integrated Textile Parks (SITP) and Common Compliance Code.

To encourage Foreign Direct Investment in Technical Textiles, under the Technology Mission on Technical Textiles (TMTT), empanelled associations/ institutes/ COEs will be eligible for a service fee of 3% of the project cost for FDI projects on successful completion of the projects in Medium, Small and Micro Enterprises sector.

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Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ,  फिर कहा "बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है  दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा  मैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ,  कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल  धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?  सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको,  जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है  आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहीं  हे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये  सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन  वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थी  पत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था  गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के  दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम किया  माँ का पय भी न पीया मैंने, उलटे अभिशाप लिया मैंने  वह तो यशस्विनी बनी रह

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