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National Permit Scheme

A new national permit system has been implemented in all States / Union Territories with effect from 8th May.2010 in order to facilitate inter-state movement of goods carriages. As per the new arrangement, national permit can be granted by the home State on payment of Rs. 1,000/- as home State authorization fee and Rs. 15,000/- per annum per truck towards consolidated fee authorizing the permit holder to operate throughout the country. Government has also taken necessary steps to implement the new national permit system electronically with effect from 15th September.2010. The consolidated fee collected by the Central Government through State Bank of India is distributed among the States / Union Territories on a prorata basis.

Under the new national permit scheme, the consolidated fee is being distributed among the States / Union Territories on the basis of an agreed formula which is based upon the average composite fee received by the States / Union Territories during the years 2007-08, 2008-09 and 2009-10. Share of States / Union Territories in every Rs.15,000/- collected towards consolidated fee for national permit has been notified vide S.O. 1848 (E) dated 28th July,2010.

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Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ,  फिर कहा "बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है  दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा  मैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ,  कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल  धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?  सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको,  जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है  आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहीं  हे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये  सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन  वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थी  पत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था  गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के  दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम किया  माँ का पय भी न पीया मैंने, उलटे अभिशाप लिया मैंने  वह तो यशस्विनी बनी रह

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