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कर्मवीर - By Ayodhaya Singh Upadhaya "Hariaudh"


I came across this one more poem by Ayodhaya Singh Upadhaya yesterday and found it very motivating . 


               देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं।
               रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं
               काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नही
               भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।।
               हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
               सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।।



               आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
               सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
               मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही
               जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
               भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
               कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।।



               जो कभी अपने समय को यों बिताते है नहीं
               काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
               आज कल करते हुए जो दिन गँवाते है नहीं
               यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
               बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये
               वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिये।।



               व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
               वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर
               गर्जते जल राशि की उठती हुई ऊँची लहर
               आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
               ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
               भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।



                          -Ayodhya Singh Upadhaya "Hariaudh"

Comments

  1. purani yaade taaja ho gayi. Ye kavita school me hua karti thi

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  2. Haan yaar...mujhe bahut pasand hai :)

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  3. where will i get summary of this poem?

    ReplyDelete
  4. i need summary of this poem...it's very urgent

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